आजादी के 75 साल का जश्न (Azadi ka amrut mahotsav) भारत सरकार आजादी का अमृत महोत्सव के नाम से मना रही है। इसी क्रम में एशियानेट न्यूज (Asianet News) ने भी अमृत महोत्सव यात्रा शुरू की है। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत (Governor) ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा को रवाना किया।
जमनालाल पहले अपने दत्तक पिता के व्यवसाय में शामिल हुए और बाद में अपनी खुद की चीनी मिल की स्थापना की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उनके दान के लिए ब्रिटिश सरकार ने जमनालाल को राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया।
हमारा देश आजादी के 75 साल का जश्न मना रहा है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए न जाने कितने लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। उन्हीं में से एक थे देश के मशहूर उद्यमी जमनालाल बजाज।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत सारी क्रांतिकारी महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। बंगाल की महिला क्रांतिकारी हों या दक्षिण भारत की महिलाएं, सभी ने देश की आजादी के लिए प्राण न्योछावर किए हैं।
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने महिलाओं को शामिल किया था उनका कहना था कि महिलाओं ज्यादा धैर्य और सहनशीलता होती है। देशभर से बड़े पैमाने पर महिलाएं आजादी की लड़ाई में शामिल हुईं। जानिए उन वीर, साहसी महिलाओं की कहानी।
बेथ्यून कॉलेज में छत्री संघ नामक क्रांतिकारी बालिका संगठन का गठन किया और हथियारों और छापामार युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया। कई लोग उदीयमान कम्युनिस्ट पार्टी के हमदर्द थे। जानें इस महिला समूह की कहानी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में देश की वीरांगना महिलाओं ने भी हंसते-हंसते प्राणों की आहुति दी है। महिलाओं ने क्रांतिकारियों के समूह की लाजिस्टिक मदद भी की, जिससे अंग्रेजों के खिलाफ अभियान मजबूत हो सका। कई बार तो महिलाओं ने क्रांतिकारी ग्रुप ही बना लिया और अंग्रेजों से लोहा लिया।
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा ने इस मिथक को भी ध्वस्त कर दिया, जिसमें यह माना जाता था कि कोई भारतीय प्लेन नहीं उड़ा सकता। जेआरडी टाटा आधी सदी के बाद भारत के सबसे बड़े उद्योगपति बने। भारत रत्न पाने वाले पहले भारतीय उद्यमी बने।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जेआरडी टाटा को एक ऐसे व्यक्ति के रुप में याद किया जाता है, जिन्होंने अंग्रेजों के कई पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करने का काम किया। उन्होंने अपने ही अंदाज में अंग्रेजों को मात दी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुरूआत 1857 से मानी जाती है, जब पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था। लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि 1857 से 2 साल पहले भी एक विद्रोह हुआ था, जिसे संथाल विद्रोह कहा जाता है।