सार
इस बार 13 अक्टूबर, बुधवार को शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि और 14 अक्टूबर, गुरुवार को नवमी तिथि रहेगी। ज्योतिषियों के अनुसार, महाष्टमी पर देवी पूजा सुकर्मा योग में की जाएगी। वहीं, महानवमी तिथि की पूजा गुरुवार को रवियोग में की जाएगी।
उज्जैन. नवरात्रि की इन दो तिथियों को देवी पूजा के लिए बहुत ही खास माना जाता है। इन दिनों में कन्या पूजा, हवन और निशिथ काल यानी मध्यरात्रि में की गई देवी पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, 13 अक्टूबर को अष्टमी तिथि रात 11.20 तक रहेगी। इसलिए कन्या पूजन और देवी आराधना बुधवार को होगी। वहीं, नवमी तिथि 14 अक्टूबर को रात 9.27 तक रहेगी। इसलिए नवमी पर होने वाली देवी महापूजा गुरुवार को की जाएगी।
दुर्गाष्टमी तिथि
अष्टमी तिथि आरंभ- 12 अक्टूबर रात 01.25 से
अष्टमी तिथि समाप्त- 13 अक्टूबर रात 11.20 तक
नवमी तिथि
नवमी तिथि आरंभ-13 अक्टूबर रात 11.21 से
नवमी तिथि समाप्ति-14 अक्टूबर शाम 09.27 तक
यश-कीर्ति और समृद्धि देने वाली होती है नवरात्रि की अष्टमी
हर महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत किया जाता है लेकिन नवरात्रि में पड़ने वाली अष्टमी का विशेष महत्व माना गया है। इसे महाअष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि परम कल्याणकारी और यश-कीर्ति व समृद्धि दिलाने वाली मानी गई है। मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा की विधिवत पूजा करने से सभी कष्टों का नाश होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसके साथ ही अष्टमी तिथि पर कुमारी पूजन भी किया जाता है।
महानवमी पर मां देती हैं सभी सिद्धियां
नवरात्रि के आखिरी दिन यानी महानवमी को समस्त सिद्धि प्रदान करने वाली मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाएगा। अष्टमी तिथि की तरह ही नवरात्रि में नवमी तिथि का भी विशेष महत्व माना गया है। इस दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूप की प्रतीक नौ कन्याओं और एक बालक को भी आमंत्रित कर बटुक भैरव का स्वरूप अपने घर आमंत्रित करके पूजन किया जाना चाहिए। साथ ही अगर देवी सरस्वती की स्थापना की हो तो उनका विसर्जन नवमी को किया जा सकता है। ये मन्वादि तिथि होने से इस दिन श्राद्ध का भी विधान है। इस तिथि पर सुबह जल्दी स्नान कर के दिनभर श्रद्धानुसार दान करने की परंपरा है।
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