सार
हिंदू पंचांग के अनुसार, एक साल में 4 नवरात्रि मनाई जाती है। इनमें से 2 गुप्त नवरात्रि होती है और 2 प्रकट। साल की सबसे पहली नवरात्रि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) से ही हिंदू नववर्ष का आरंभ भी होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि 2 से 10 अप्रैल तक मनाई जाएगी।
उज्जैन. ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार कोई भी तिथि क्षय नहीं होने ये नवरात्रि पूरे 9 दिन की रहेगी। नवरात्रि की शुरूआत में कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जो इसे और भी खास बना रहे हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घट यानी कलश यानी कलश स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद कई नियमों का पालन करना आवश्यक हो जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में रोज देवी के अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है। आगे जानिए घट स्थापना की विधि, शुभ मुहूर्त, उपाय, आरती व पूजा से जुड़ी अन्य खास बातें…
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ये है घट स्थापना और पूजा की संपूर्ण विधि (Chaitra Navratri 2022 Ghat Sthapna)
- पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर तांबे या मिट्टी के कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर माता की मूर्ति या चित्र रखें।
- मूर्ति अगर कच्ची मिट्टी से बनी हो और उसके खंडित होने की संभावना हो तो उसके ऊपर उसके ऊपर शीशा लगा दें।
- मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति की पूजा करें।
- दुर्गा देवी की पूजा में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा और श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।
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ये हैं घट स्थापना के शुभ मुहूर्त (Chaitra Navratri 2022 Ghat Sthapna Muhurat)
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार घट स्थापना 02 अप्रैल की सुबह 06:09 से 08:31 या 11:59 से 12:49 तक अभिजीत मुहूर्त में करना श्रेष्ठ रहेगा। सुबह 08:31 के बाद वैधृति योग होने के कारण कलश स्थापना या तो उससे पहले करें या अभिजीत मुहूर्त में।
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ध्यान रखें घट स्थापना और अखंड ज्योति से जुड़ी ये 4 बातें...
1. नवरात्रि में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
2. मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है-
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात- घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए।
3. अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
4. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती है। छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
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नवरात्रि में रोज करें मां दुर्गा की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता। सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
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नवरात्रि में किस दिन देवी को कौन-सी चीज का भोग लगाएं? (Navratri Ke Upay)
चैत्र नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक देवी को विशेष भोग् अर्पित करने के बाद में इसे गरीबों को दान करने से व्यक्ति की हर मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। नवरात्रि में किस तिथि पर देवी मां को किस चीज का भोग लगाएं, इसकी जानकारी इस प्रकार है…
1. प्रतिपदा तिथि पर माता को घी का भोग लगाएं तथा दान करें। इससे बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।
2. द्वितीया तिथि को माता को शक्कर का भोग लगाएं। ये उपाय करने से उम्र बढ़ती है।
3. तृतीया तिथि को माता को दूध चढ़ाएं। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है।
4. चतुर्थी तिथि को माता को मालपुए का भोग लगाएं। इससे समस्याओं का अंत होता है।
5. पंचमी तिथि को माता को केले का भोग लगाएं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
6. षष्ठी तिथि पर माता को शहद का भोग लगाएं। इससे धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
7. सप्तमी तिथि को माता को गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाएं तथा दान भी करें। इससे गरीबी दूर होती है।
8. अष्टमी तिथि को माता दुर्गा को नारियल का भोग लगाएं। इससे सुख-समृद्धि मिलती है।
9. नवमी तिथि पर माता को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं। इससे जीवन का हर सुख मिलता है।
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चैत्र नवरात्रि में करें दुर्गा सप्तशती का पाठ तो रखें इन बातों का ध्यान (Durga Saptashati Paath Ki Vodhi)
चैत्र नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) के पाठ से घर में नकात्मकता प्रवेश नहीं होता है और आपके जीवन में खुशहाली आती है। मां आदिशक्ति प्रसन्न हेती हैं और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं, लेकिन दुर्गासप्तशती का पाठ करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए। जानते हैं, नहीं तो अशुभ परिणाम भी मिल सकते हैं। आगे जानिए दुर्गा सप्तशती से जुड़ी खास बातें…
1. यदि आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करने जा रहे हैं तो सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक व अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, तत्पश्चात दुर्गा सप्तशती के पाठ का आरंभ करें। इस तरह से पाठ करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है और मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
2. पाठ करते समय सबसे आवश्यक होता है कि शब्दों का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए। कुछ लोग गाते हुए पाठ करते हैं तो वहीं कुछ लोग बहुत ही तेजी के साथ पाठ करते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार पाठ को मध्यम स्वर में आराम से समझते हुए पढ़ना चाहिए।
3. यदि आप नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो इस बात को ध्यान में रखें कि पुस्तक को कभी हाथ में लेकर पाठ नहीं करना चाहिए बल्कि उसे किसी चौकी या फिर पुस्तक स्टैंड पर रखकर ही पढ़ना चाहिए।
4. नवरात्रि या फिर अन्य किसी भी दिन आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं तो इस दौरान बीच में रुकना नहीं चाहिए और न ही पाठ छोड़कर उठना चाहिए।
5. दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय और तीन खंड हैं, प्रथम, मध्यम और उत्तर, यदि आप एक बार में पूरा पाठ नहीं कर पा रहे हैं तो आप एक बार में एक खंड का पाठ भी कर सकते हैं।
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