कोरोनावायरस महामारी पर काबू पाने के लिए लंबे समय तक लॉकडाउन लगाया गया। लेकिन अब अनलॉक की घोषणा के बाद संक्रमण के मामलों में तेजी आई है। भारत में कोरोना संक्रमण के मामले करीब 5 लाख, 28 हजार हो चुके हैं। इससे मरने वालों की संख्या भी 16 हजार पार कर चुकी है। इससे लोग तनाव में हैं और उनके मन में डर समा गया है।
कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन का बच्चों के दिलो दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा है। अक्सर बच्चे अपनी बातें बताते नहीं हैं, लेकिन उनके बिहेवियर को देख कर यह आसानी से समझा जा सकता है कि वे भी तनाव और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं।
आजकल शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करता हो। बच्चों से लेकर बुजुर्ग और हर उम्र की महिलाएं भी सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं। सोशल मीडिया के इस्तेमाल में कुछ सावधानी बरतनी चाहिए, नहीं तो कई तरह की परेशानी खड़ी हो जाती है।
कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में ज्यादातर लोग तनाव, चिंता और घबराहट जैसी मानसिक समस्याओं से परेशान हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इस महामारी की वजह से लोगों में मानसिक बीमारियों के लक्षण बढ़े हैं।
कोरोना वायरस महामारी के दौरान लोगों में डिप्रेशन का खतरा बढ़ता जा रहा है। ज्यादातर लोग मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। इस दौरान लोग आत्महत्या भी करने लगे हैं।
आजकल सोशल मीडिया के बढ़ते असर के चलते फादर्स डे, मदर्स डे, फ्रेंडशिप डे वगैरह मनाने का चलन बढ़ गया है, लेकिन ये दिवस क्यों मनाए जाते हैं, इसकी जानकारी कम ही लोगों को होती है।
हर मां-पिता की यह दिली इच्छा होती है कि उनका बच्चा ठीक से पढ़े-लिखे और हर तरह से उसका विकास हो। लेकिन इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है।
कोरोनावायरस महामारी के दौरान लॉकडाउन में ज्यादातर लोग घर में ही समय बिता रहे हैं। बोरियत से बचने के लिए लोग अपना ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने से तनाव पैदा होने लगता है और नेगेटिविटी बढ़ती है।
कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन के इस दौर में हर आदमी मानसिक तौर पर परेशान है। ऐसे में, छोटी-छोटी और मामूली बातों पर घरेलू कलह होने की गुंजाइश बनी रहती है।
कोरोना माहामारी और लॉकडाउन के दौरान लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की काफी खबरें सामने आ रही हैं। आत्महत्या करने वालों में हर वर्ग के लोग शामिल हैं। दरअसल, जब डिप्रेशन अपने चरम पर पहुंच जाता है, तो उसकी परिणति आत्महत्या में ही होती है। इसकी अलग-अलग वजहें हो सकती हैं।