मकर संक्रांति पर ऐसे ही नहीं उड़ाई जाती पतंग, इसके पीछे हैं कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

सूर्य हर महीने अलग-अलग राशियों में रहता है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 जनवरी, बुधवार को है। 

/ Updated: Jan 13 2020, 04:26 PM IST
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वीडियो डेस्क। सूर्य हर महीने अलग-अलग राशियों में रहता है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 जनवरी, बुधवार को है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा भी है। इस परंपरा के कई फायदे भी हैं, जो इस प्रकार हैं...
इसलिए उड़ाते हैं मकर संक्रांति पर पतंग
मकर संक्रांति और पतंग एक-दूसरे के पर्याय हैं। पतंग के बिना मकर संक्रांति पर्व के बारे में सोच भी नहीं जा सकता। भारत के अधिकांश हिस्सों में इस दिन पतंगबाजी की जाती है, खासतौर पर गुजरात में।
इसके अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में भी मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु वैज्ञानिक पक्ष अवश्य है।
सर्दी के कारण हमारे शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है और त्वचा भी रुखी हो जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है, इस कारण इस समय सूर्य की किरणें औषधि का काम करती हैं।
पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है, जिससे सर्दी से जुड़ी शारीरिक समस्याओं से निजात मिलती है व त्वचा को विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
इस मौसम में विटामिन डी हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक होता है, जिससे हमें जीवनदायिनी शक्ति मिलती है।
यही कारण है कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरूआत हुई।