India@75: कहानी वीरांगना मातंगिनी हाजरा की जिन्हें गोलियों से भूना गया लेकिन हाथ से नहीं छोड़ा तिरंगा
आजादी के अमृत महोत्सव में आज बात उस वीरांगना की जिन्हें अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया लेकिन हाथ से तिरंगा नहीं छोड़ा। आखिरी सांस तक वे वंदे मातरम का उद्घोष करती रहीं। 72 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गईं
मातंगिनी हाजरा जो देश की आजादी के लिए 72 साल की उम्र में शहीद हो गईं। वो वीरांगना जिसे गोलियां से भून दिया गया लेकिन आखिरी सांस तक तिरंगा हाथ ने नहीं छोड़ा। बात 1942 की है जब मातंगिनी हाजरा मेदिनीपुर में पुलिस स्टेशन तक तिरंगा लेकर 6000 से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक मार्च का नेतृत्व कर रहीं थी। जैसे ही मार्च ब्रिटिश पुलिस अधिकारी के पास पहुंचा, उन्होंने मार्च करने वालों को तितर-बितर करने के लिए गोलीबारी करने का आदेश दे दिया। लेकिन आजादी की मांग ऐसी थी कि मार्च करने वालों के कदम नहीं रुके जोर जोर से ब्रिटिश भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए कदम आगे बढ़ते गए। अंग्रेजों के आदेश के बाद मातंगिनी आगे आई और कहा पहले मुझे गोली मारो। निर्दयी क्रूर अधिकारी चिल्लाया और मातंगिनी को गोली मार दी गई। लेकिन मातंगिनी के कदम नहीं रुके खून से लथपथ हाथों में तिरंगा लेकर वे आगे बढ़ती गईं। जुबां पर गांधी जी की जय और वंदे मातरम जैसे शब्द थे। अंग्रेज बौखला गए और मातंगिनी पर दो गोलियां और दागी गईं। मातंगिनी हाथों में तिरंगा लेकर वहीं गिर गई और शहीद हो गईं। जानें देश के लिए शहीद होने वाली इस वीरांगना की कहानी।