महीनों से विधवा आश्रय सदन में रातें गुजार रही करोड़पति मां, कैमरे के सामने सुनाई दर्दनाक कहानी

झरना बनर्जी नाम की महिला जो पिछले डेढ़ वर्ष से वृंदावन के आश्रय सदन में रह रही हैं। यहां रहकर अपना जीवन यापन कर रही हैं। झरना बनर्जी ने बताया- उनके दो बेटा और दो बेटी हैं। एक बेटा गुजर गया है। एक इंजीनियर और दूसरा कस्टम ऑफिसर था। पति रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। उनकी एक्सीडेंट में मौत हो गई। पति की हादसे में मौत होने के बाद उस घर में मेरा कोई नहीं रहा। बेटों की पत्नियां आए दिन झगड़ा करतीं और घर से बाहर निकाल देती थीं। 
 

/ Updated: Jun 24 2022, 12:20 PM IST
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मथुरा: अपनों की ठुकराई हुई माताएं वृंदावन में रहकर अपना जीवन यापन कर रही हैं। किसी का बेटा इंजीनियर है तो किसी का बेटा कस्टम ऑफिसर परिवार संपन्न होने के बाद भी यह माताएं दर-दर की ठोकरें खाते हुए वृंदावन के आश्रमों में पहुंचती हैं और यहां श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर अपना जीवन यापन कर रहीं हैं। अब ना तो इन मातओं को अपने परिवार की याद आती है और नाही किसी रिश्तेदार की। भगवान के भजनों में लीन होकर भजन कीर्तन करते हुए व्यतीत कर रही हैं।

वृंदावन की परिक्रमा मार्ग स्थित एक विधवा आशा सदन में रहने वाली माताएं वृंदावन मथुरा में सड़कों पर चल कर भीख मांग की आपको दिखाई दे जाती होंगी। माताओं के आश्रय सदनों में रहने के पीछे बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। यह माताएं कोई आम महिला नहीं हैं। संपन्न परिवारों की महिलाएं हैं। अपनों ने इन्हें दुदकारा तो यह वृंदावन के आश्रय सदनों की ओर अपना रुख कर लिया और वृंदावन के आश्रय साधनों में रहकर अपने जीवन को गुजार रही हैं। झरना बनर्जी नाम की माता जो कि पिछले डेढ़ वर्ष से वृंदावन के आश्रय सदन में रह रही हैं। यहां रह कर अपना जीवन यापन कर रही हैं। झरना बनर्जी से जब बात की तो उन्होंने बताया कि दो बेटा और दो बेटी हैं एक बेटा गुजर गया है। एक इंजीनियर और दूसरा कस्टम ऑफिसर था। पति रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। उनकी एक्सीडेंट में मौत हो गई। पति की हादसे में मौत होने के बाद उस घर में मेरा कोई नहीं रहा। बेटों की बहू आए दिन झगड़ा करतीं और घर से बाहर निकाल देती थीं। इसी बात से परेशान होकर मैं मथुरा के लिए निकल आई। उन्होंने अपनी दु:ख भरी दास्तान बताते हुए यह भी बताया कि 7 साल मथुरा रेलवे जंक्शन पर रही थी। भीख मांग कर बमुश्किल दो वक्त की रोटी नसीब होती थी। उन्होंने बताया कि पैर टूट गया था तो वृंदावन के आश्रम में बड़ी मुश्किल से पहुँची। वृंदावन के आश्रय सदन में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहीं हूँ। 

वहीं मनु घोष नाम की 90 वर्षीय विधवा माता से जब उनके जीवन के बारे में पूछा तो कुछ देर तो वो शांत रहीं। कुछ देर बाद शांत रहने के बाद उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी और धीरे से बोली कि 11 वर्ष की उम्र में 40 साल के व्यक्ति सर उनकी शादी हो गई। पति की मौत के बाद परिवार ने साथ छोड़ दिया। मैं कोलकाता की एक कोठी में कपड़े और बर्तन धोने का काम करने लगी। समय व्यतीत होता गया और मेरे विधवा होने की जानकारी जब कोठियों में रहने वाले लोगों को हुई तो उन्होंने भी मेरा साथ छोड़ दिया। मुझे काम से निकाल दिया गया। मैं और मेरी बेटी सड़क पर आ गए। किसी से कोई उम्मीद नहीं थी। भूख के कारण बेटी भी मर गई। इसके बाद में हमेशा के लिए वृंदावन आ गई। वह कहती हैं रास्ता नहीं पता था। हाथ मैं पैसे भी नहीं थे। कई कई दिनों तक भूखी प्यासी रही। कई साल सड़कों और स्टेशनों पर भी गुजारे भीख मांग कर अपना पेट किसी भी तरह भर लेती थी। कभी-कभी ऐसा दिन गुजरता था कि भूखे पेट ही सोना पड़ता था। फिर किसी तरह वृंदावन एक आश्रम में पहुंच गई। उस आश्रम में खाने-पीने को नहीं मिला था। भजनाश्रम में जाकर भजन करती रही जहां कुछ रुपए मिलते थे, जिससे खाने का गुजारा हो जाता था। यहां रहते हुए 31 साल हो गए हैं।