सार
वैदिक ज्योतिष कुंडली के अनुसार सातवां घर 12 भावों में से एक बहुत महत्वपूर्ण भाव है। इस भाव से विवाह और दांपत्य जीवन से जुड़ी बातों पर विचार किया जाता है। इस घर में अगर पाप ग्रह हो या पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो वैवाहिक सुख में कमी आ सकती है।
उज्जैन. ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की कुछ ऐसी स्थितियों के बारे में भी बताया गया है, जिनसे वैधव्य योग बनता है यानी जिस लड़की की कुंडली में ये योग होता है, उसके पति की मृत्यु हो जाती है। आज हम आपको इसी योग के बारे में बता रहे हैं…
1. सप्तम भाव विवाह भाव हैं, इस भाव में मंगल और पाप ग्रहों की स्थिति कन्या की कुंडली में होने पर विधवा योग बनाती है।
2. चन्द्रमा से सातवें या आठवें भाव में पापग्रह हो तो मेष या वृश्चिक राशिगत राहु और आठवें या बारहवें स्थान में तो ऐसी कन्या विधवा होती है। यह बात वृष, कन्या एवं धनु लग्नों में लागू होती है।
3. मकर लग्न हो तो सप्तम भाव में कर्क राशिगत सूर्य मंगल के साथ हो तथा चन्द्रमा पाप पीड़ित हो तो वैधव्य योग बनता है। ऐसी स्त्री विवाह के सात–आठ वर्ष के अन्दर ही विधवा हो जाती है।
4. लग्न एवं सप्तम दोनों स्थानों में पापग्रह हो, तो विवाह के सातवें वर्ष पति का देहांत हो जाता हैं।
5. सप्तम भाव में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा छठे या सातवें भाव पर हो तो विवाह के आठवें वर्ष स्त्री विधवा हो जाती है।
6. यदि अष्टमेश सप्तम भाव में हो, सप्तमेश को पापग्रह देखते हो एवं सप्तम भाव पाप पीड़ित हो तो नव विवाहिता स्त्री शीघ्र विधवा हो जाती है।
7. षष्टम व अष्टम भाव के स्वामी यदि षष्टम या व्यय भाव में पापग्रहों के साथ हो तो नव विवाहिता शीघ्र ही वैधव्य को प्राप्त होती है।
8. जन्म लग्न से सप्तम, अष्टम स्थानों के स्वामी पाप पीड़ित होकर छठे या बाहरवें भाव में चले जाये तो निसंदेह वैधव्य योग होता हैं।
9. पापग्रह से दृष्ट पापग्रह यदि अष्टम भाव में हो और शेष ग्रह चाहें उच्च के ही क्यों न हो, ऐसी स्त्री विधवा अवश्य होती है।
10. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त योगों में से कोई एक योग होने पर विधवा होना नहीं समझना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि दो या दो से अधिक अशुभ योग एक साथ बन रहें हों, साथ ही इन अशुभ योगों से संबंधित ग्रहों की दशा और गोचर भी विवाह के उपरान्त प्राप्त हो रही हो।
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