गंगा दशहरा पर संत समिति ने काशी के घाट पर किया पूजा-पाठ, मां गंगा से की विश्व में शांति की कामना
गंगाजी के पूजन के इस अवसर पातालपुरी के महन्त बालक दास, दण्डी संन्यासी प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम, कर्णघण्टा के महन्त ईश्वर दास, महन्त अवधेश दास सहित दर्जनों दण्डी संन्यासी एवं बैरागी सन्त तथा समाज विज्ञान संकाय, बी एच यू के प्रो अरविन्द जोशी, श्रीकाशी विद्वत्परिषद के संगठन मंत्री पं. गोविन्द शर्मा, डॉ सन्तोष ओझा, विपिन सेठ, आशुतोष ओझा समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
वाराणसी: काशी के समस्त सम्प्रदायों के सन्तों-महात्माओं ने गंगा महासभा एवं अखिल भारतीय सन्त समिति के महामन्त्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती जी के सानिध्य में अस्सी घाट पर माँ गंगा का षोडशोपचार पूजन किया। गंगाजी के पूजन के इस अवसर पातालपुरी के महन्त बालक दास, दण्डी संन्यासी प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम, कर्णघण्टा के महन्त ईश्वर दास, महन्त अवधेश दास सहित दर्जनों दण्डी संन्यासी एवं बैरागी सन्त तथा समाज विज्ञान संकाय, बी एच यू के प्रो अरविन्द जोशी, श्रीकाशी विद्वत्परिषद के संगठन मंत्री पं. गोविन्द शर्मा, डॉ सन्तोष ओझा, विपिन सेठ, आशुतोष ओझा समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि धर्मशास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगाजल के सेवन या गंगा स्नान करने से अनजाने में हुए पाप और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है एवं दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।
दैहिक पाप जैसे बिना दी हुई वस्तु को लेना, निषिद्ध हिंसा, परस्त्री संगम,, यह तीन प्रकार का दैहिक पाप माना गया है। वाणी से पाप- कठोर वचन मुँह से निकालना, झूठ बोलना, चुगली करना एवं वाणी द्वारा किसी के मन को दुखाना,-ये वाणी से होने वाले चार प्रकार के पाप हैं। मानसिक पाप- दूसरे के धन को लेने का विचार करना, मन से किसी का बुरा सोचना और असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना-ये तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे गए हैं। ये सभी दैहिक, वाणी द्वारा एवं मानसिक पाप, गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी गंगा में स्नान से धुल जाते हैं। यह गंगा दशहरा का महत्व है। इस अवसर पर उन्होंने श्रद्धालुओं और स्नानार्थियों से माँ गंगा को स्वच्छ बनाए रखने का निवेदन किया।