एमपी में हुए इस हादसे में मारे गए थे 90 लोग, पेटलावद हादसे की चौथी बरसी आज

12 सितंबर 2015 की वो तारीख जब देश के दिल मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद में धमाके में करीब 90 लोगों की जान चली गई। पेटलावद में 12 सितंबर की सुबह लोग एक छोटी सी गुमटी में चाय- नाश्ता कर रहे थे उसी दौरान चाय-नाश्ते की दुकान में एक सिलिंडर फटा, उसी समय उस दुकान से सटे जिलेटिन छड़ों के गोदाम में जबरदस्त विस्फोट हुआ था।

/ Updated: Sep 11 2019, 08:23 PM IST

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झाबुआ.12 सितंबर 2015 की वो तारीख जब देश के दिल मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद में धमाके में करीब 90 लोगों की जान चली गई। पेटलावद में 12 सितंबर की सुबह लोग एक छोटी सी गुमटी में चाय- नाश्ता कर रहे थे उसी दौरान चाय-नाश्ते की दुकान में एक सिलेंडर फटा, चारो ओर चीख-पुकार मच गई।  चाय की दुकान में फटे सिलेंडर के बाद उस दुकान से सटे विस्फोटक पदार्थ जिलेटिन छड़ों के गोदाम में जबरदस्त धमाका हुआ। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था ये क्या हुआ। सड़क पर बिखरा पड़ा खून किसी बड़ी अनहोनी की गवाही दे रहा था। आसपास के कई मकान जमीजोद हो गए।

इस हादसे ने 90 लोगों में अपने आगोश में ले लिया। वो गोदाम विस्फोटक सामग्री के विक्रेता राजेंद्र कासवा का था। इन विस्फोटकों का उपयोग खनन कार्य के लिए किया जाता था। ब्लास्ट  की घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने राजेंद्र कासवा को मुख्य आरोपी मानते हुए उस पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया था और इस मामले की जांच के लिए एसआईटी बनाई गई थी। एसआईटी और झाबुआ पुलिस ने कासवा की धरपकड़ के लिए कई स्थानों पर दबिश दी थी, मगर कामयाबी नहीं मिली। पुलिस को आशंका थी कि कासवा भी विस्फोट में मारा गया है। स्थानीय लोगों का भी यहीं कहना है हालांकि कासवा के दो भाई अब भी जेल में हैं। विस्फोट में मारे गए लोगों के शवों में से चार ऐसे थे, जिनको लेने कोई नहीं आया। हादसे में मारे गए लोगों के लिए उस वक्त की सरकार ने परिजानों को 4 -4 लाख के मुआवजा देने की बात कहीं गई थी लेकिन ये मुआवजा भी कुछ पीड़ितों को अभी तक नहीं मिला है।

आपको बता दें मध्य प्रदेश के इस इलाके में माइनिंग बिजनेस के लिए विस्फोटकों का लाइसेंस पाना काफी आसान है। झाबुआ जिले का इलाका पथरीला है। इसलिए यहां सड़क निर्माण, खदानों, कुओं और तालाबों की खुदाई के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके लिए यहां कुछ लोग जिलेटिन विस्फोटक का धंधा करते हैं। हादसे की चौथी बरसी पर यही सवाल बना हुआ हैं कि आखिर कब तक पीड़ितों के न्याय मिलेगा।