8 सीटर स्कूल वाहन में भरे जा रहे 2 दर्जन बच्चे, लापरवाही देखकर भी नजरंदाज कर रहा जिला प्रशासन
बागपत के चमरावल गांव में स्थित रॉयल कान्वेंट स्कूल में 6 वर्षीय छात्र आयुष की मौत के बाद भी स्कूल संचालकों में जरा भी डर नहीं है। स्कूल संचालक कमाई के चलते हजारों नौनिहालों तक की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। आठ सीटों वाले टैंपों पर 20 बच्चे तो 10 सीट वाली वैन में 26 बच्चों को ठूंसकर ले जाया जा रहा है। रोजाना शहर की सड़कों पर इस तरह की लापरवाही का खुलेआम नजारा भी जैसे आम बात हो गई है।
बागपत के चमरावल गांव में स्थित रॉयल कान्वेंट स्कूल में 6 वर्षीय छात्र आयुष की मौत के बाद भी स्कूल संचालकों में जरा भी डर नहीं है। स्कूल संचालक कमाई के चलते हजारों नौनिहालों तक की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। आठ सीटों वाले टैंपों पर 20 बच्चे तो 10 सीट वाली वैन में 26 बच्चों को ठूंसकर ले जाया जा रहा है। रोजाना शहर की सड़कों पर इस तरह की लापरवाही का खुलेआम नजारा भी जैसे आम बात हो गई है। घर से स्कूल तक की इस असुरक्षित सफर को लेकर परिवहन विभाग को न चिंता है और न ही स्कूल प्रबंधन ही इसकी जिम्मेदारी लेता है। चिंतित हैं तो सिर्फ वे अभिभावक जिनके लाडले रोजाना जानलेवा सफर पर घर से स्कूल के लिए निकलते हैं। लंबे समय से तो स्कूल वाहनों के फिटनेस की जांच भी नहीं हुई है और न ही इनमें क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाने के कारण कोई कार्रवाई हुई है। लिहाजा स्कूल वाहनों के संचालकों के हौसले बुलंद हैं। बे-रोकटोक स्कूल वाहनों के लिए तय मानकों की अनदेखी की जा रही है।
मानकों की अनदेखी सामने आई
सभी छोटे-बड़े स्कूलों में स्कूल वाहनों के लिए तय मानकों की अनदेखी सामने आई। जानवरों की तरह बच्चों को वाहनों में लादकर ले जाया जा रहा है। कहीं बच्चे टेम्पो में लटके हैं तो कहीं ड्राइवर की सीट पर चार-चार छात्र बैठकर सफर कर रहे हैं। पिछले पांच दिनों में ही दो ई-रिक्शा अत्यधिक ओवरलोड होने के कारण पलट चुकी हैं जिनमें एक दर्जन बच्चे भी घायल हुए थे। इसके बावजूद स्थिति में जरा भी परिवर्तन नहीं है। रोजाना इसी तरह से ये ई-रिक्शा बच्चों को भूंसे की तरह भरकर ले जाती हैं।
ये रहे सरकारी नियम
प्राइवेट स्कूलों में लगे वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स की व्यवस्था के साथ ही प्रत्येक वाहन में फायर एक्सटिंग्युशर लगे होने चाहिए।
स्कूल वाहनों के आगे-पीछे स्कूल वैन या स्कूल बस अंकित हो।
स्कूली बसों में सीट क्षमता के अनुरूप ही छात्र को बिठाएं।
वाहनों पर स्कूल का नाम और टेलीफोन नंबर अवश्य लिखें।
प्रत्येक स्कूल वाहन के चालक को कम से कम 5 साल का अनुभव हो ।
स्कूल वाहन के चालक का कोई चालान नहीं होना चाहिए और न ही उसके खिलाफ कोई मामला हो। बस और वैन में बैग रखने के लिए सीट के नीचे व्यवस्था हो।
स्कूल वाहन चलवाने वाले प्रत्येक चालक का जिले के सिविल सर्जन से फिजिकल फिटनेस सर्टिफिकेट लेना भी अनिवार्य है, लेकिन ये सारे परिवहन विभाग के ऑफिस में रखी फाइलों में दर्ज हैं पर जमीन एक भी नियम का पालन नहीं हो रहा। ऐसे में बच्चो की सुरक्षा रामभरोसे है।