
लॉकडाउन: इस समय गंगा में 'अमृत' बह रहा है, देखिए वीडियो
वीडियो डेस्क। देश के हर एक प्राणी को अपने पानी से सींचने वाली गंगा अब पहले से ज्यादा निर्मल और साफ दिखने लगी है। अब मछलियां किनारे आ जाती हैं। और पानी में डोलती हुई नजर आती हैं। काला दिखने वाला पानी अब कांच की तरह साफ दिख रहा है। ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ गई है। सूरज की किरण जब पानी पर पड़ती है तो खिलखिला उठतीं हैं। हवा पहले से ज्यादा निर्मल हो गई हैं। बतख, सांप, मेढ़क अब और भी ज्यादा उछलते और कूदते हैं। ये मां गंगा हैं जो लॉकडाउन में प्रदूषण से मुक्त हो रहीं हैं।
वीडियो डेस्क। देश के हर एक प्राणी को अपने पानी से सींचने वाली गंगा अब पहले से ज्यादा निर्मल और साफ दिखने लगी है। अब मछलियां किनारे आ जाती हैं। और पानी में डोलती हुई नजर आती हैं। काला दिखने वाला पानी अब कांच की तरह साफ दिख रहा है। ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ गई है। सूरज की किरण जब पानी पर पड़ती है तो खिलखिला उठतीं हैं। हवा पहले से ज्यादा निर्मल हो गई हैं। बतख, सांप, मेढ़क अब और भी ज्यादा उछलते और कूदते हैं। ये मां गंगा हैं जो लॉकडाउन में प्रदूषण से मुक्त हो रहीं हैं।
जुमलों से आजाद हुई गंगा
24 अप्रैल 2014 ये वो तारीख थी जब देश के प्रधानमंत्री ने वाराणसी से पर्चा भरते हुए कहा था कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है.....जैसे ही पीएम मोदी के हाथों में देश की कमान आई, उन्होंने नमामि गंगे की शुरूआत की। लेकिन 8 हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी मां गंगा साफ नहीं हो पाईं। गंगा की सफाई लोगों के लिए एक सपना मात्र बनकर रह गई थी। क्यों कि जिन फैक्ट्रियों से निकलने वाला कैमिकल गंगा को प्रदूषित कर रहा था उसके सामने ये रकम कुछ कोढियों के समान थे। लेकिन मानव द्वारा किए गए प्रकृति के खिलवाड़ ने पूरी दुनिया को बदल दिया। और ऐसा बदला कि विज्ञान भी इस बदलाव के आगे नतमस्तक हो गया।
कोरोना के कहर ने हर गली, हर चौराहे और नुक्कड़ से हंसी और खुशी छीन ली। ये खुशियां घर की चार दीवारी में कैद हो गईं। लेकिन इन सब में प्रकृति मुस्कुराने लगी। जिसका नतीजा ये हुआ कि जो गंगा सिर्फ चुनावों का मुद्दा थी आज खुद ब खुद साफ होकर हर चुनाव और जुमलों से आजाद हो गई हैं। जानकार कहते हैं कि अब गंगा का पानी अब अमृत हो गया है। सालों पहले ये गंगा ऐसे ही अविरल और निश्छिल थी।
गंगा में बह रहा है अमृत
कोरोना ने समस्त मानव जाति को घरों में कैद कर दिया है अब ना कोई फैक्ट्री चल रही है ना कोई गंदगी हो रही है। लोगों की जिंदगी पर ब्रेक लग गए हैं। लेकिन गंगा वहीं है... वैसे ही बह रहीं है...आजाद शांत और निर्मल। और इंतजार कर रहीं हैं मानव जाति को एक दूसरा मौका देने के लिए ताकि फिर से घाटों की रौनक लौट सकें। पवित्र गंगा में स्नान करके खुद को धन्य कर सकें।