विजय दिवस: 16 दिसंबर 1971, भारत ने चटाई थी पाकिस्तान को धूल

1971 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध और भारत की जीत ने हर भारतवासी के मन में उत्साह पैदा किया था।16 दिसंबर विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के अंत में पाकिस्तान ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे। 

/ Updated: Dec 16 2019, 03:38 PM IST

Share this Video
  • FB
  • TW
  • Linkdin
  • Email

3 दिंबसर से शुरू हुए भारत पाकिस्तान के इस युद्ध में 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे जबकि 9851 घायल हो गए थे। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ और एक नए राष्ट्र का जन्म हुए जिसे आज बांगलादेश के नाम से जाना जाता है।
सन 1971 ये आजाद भारत का वो साल था जिसकी शुरूआत से ही पाकिस्तान ने अपनी हरकतों से ये बता दिया था कि पाकिस्तान कभी नहीं सुधर सकता। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दिया था। जिसका खामियाजा ये हुआ के वहां के लोग भारत में शरण लेने लगे। भारत में बड़ते शरणार्थी और उन पर हो रहे अत्याचारों की खबरें सामने आई तो भारत पर ये दवाब बनने लगा कि पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना हस्तक्षेप करे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चला तो उन्होंने तुरंत एक्शन लेने की बात कही। 
ये युद्ध आसान नहीं था.. कई सारी चुनौतियां इस युद्ध के दौरान सामने आने वाली थी। मानसून दस्तक देने वाला था और भारतीय सेना पूरी तरह से इस युद्ध के लिए तैयार भी नहीं थी। पूर्वी पाकिस्तान में इस समय प्रवेश करना दांतों तले उंगली दबाने जैसा था। वीयो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस समय थलसेना अध्यक्ष मानेकशां से बात की। उस समय भारत के पास सिर्फ एक पर्वतीय डिवीजन था और इस डिवीजन के पास पुल बनाने की क्षमता नहीं थी। इस युद्ध को जीतने के लिए एक सही और सटीक रणनीति की जरूरत थी और उस जरूरत को पूरा करने के लिए जरूरी था समय। भारतीय सेना इस युद्ध में विजय फतह करने के लिए और हर चुनौती पर खरा उतरने के लिए तैयारी में जुट गई.  
3 दिसंबर 1971 इस दिन पाकिस्तान ने एक बड़ी गलती कर दी। पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय वायुसीमा को पार किया और बम गिराना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराए। भारतीय सेना ने जवाब देते हुए पूर्व में जेसोर और खुलना पर कब्ज़ा कर लिया। भारतीय सेना की रणनीति थी कि अहम ठिकानों को छोड़ते हुए पहले आगे बढ़ा जाए। युद्ध में मानेकशॉ खुलना और चटगांव पर ही कब्ज़ा करने पर ज़ोर देते रहे। ढाका पर कब्ज़ा करने का लक्ष्य भारतीय सेना के सामने रखा ही नहीं गया।
14 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने एक ऐसे खबर मिली जिससे भारत की जीत पक्की हो गई। खबर थी कि दोपहर 11 बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं। ये वो खबर थी जिसने भारतीय सेना को चौकन्ना कर दिया अब भारतीय सेना को पता था कि उनके आगे की रणनीति क्या होनी चाहिए। भारतीय सेना ने तय किया कि जिस समय मीटिंग होगी उसी समय भवन पर बम गिराए जाएं। बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी। और गवर्नर मलिक ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसी के साथ भारतीय सेना अपनी जीत सुनिश्चित कर चुकी थी। 
16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। वीयो शाम के साढ़े चार बजे जनरल भारत के जनरल जगतीत सिहं अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे। ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और पाकिस्तान के ले. जनरल एएके नियाजी एक मेज के सामने बैठे और आत्मसमर्पण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। इसी हस्ताक्षर के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान का उदय एक नए राष्ट्र के रूप में हुआ जो आज बांगलादेश के नाम से जाना जाता है