बाप और बेटे

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कई बार ज़िंदगी में कुछ बातें बहुत देर से समझ आती हैं…ये कविता मेरे पापा और मेरे रिश्ते पर लिखी गई है – एक ऐसा रिश्ता जिसमें बहुत लड़ाई रही, बहुत दूरी रही… लेकिन अब, वक़्त के साथ, दोस्ती है।इस बार जब एक क़रीबी दोस्त ने अपने पिता को खोया, और अचानक वो टूट गया… तो एक बात कह गया जो दिल में अटक गई –“मैं जिन वजहों से अपने पापा से लड़ता रहा… आज वही चीज़ें मैं खुद करता हूँ।”यही से ये कविता निकली – ‘बाप और बेटे’पर ये कविता सिर्फ बेटों की नहीं है।ये उन सबकी है जिनके मां-बाप अब उम्रदराज़ हो रहे हैं।जिन्होंने देर से समझा कि वो भी कभी बच्चे थे।जिन्हें अब समझ आ रहा है कि प्यार जताने में देर नहीं करनी चाहिए।

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