जन्माष्टमी के अवसर में कुदरकोट में होती है जश्न की तैयारियां, जानिए श्रीकृष्ण के ससुराल की क्या है मान्यता
यूपी के जिले औरैया में जन्माष्टमी के अवसर में कुदरकोट में भी जोरो शोरो से तैयारियां चल रही है। द्वापर में जब श्रीकृष्ण रुक्मणी को लेने के लिए कुदरकोट गए थे तभी से यह कृष्ण की ससुराल कही जाने लगी थी। प्राचीन काल में यहां का नाम कुंदनपुर हुआ करता था।
औरैया: जन्माष्टमी आते ही मंदिरों से लेकर घर घर मे तैयारियां शुरू हो जाती है लेकिन आज हम आप भगवान श्री कृष्ण के ससुराल के बारे में बताएंगे जो औरैया जिले में है। आज भी श्रीकृष्ण भगवान की पत्नी रुक्मणी का महल स्थित है, तो वही गांव में रुक्मणि माता का मंदिर भी बना हुआ है जहां जन्माष्टमी को लेकर तैयारियां की जा रही है। महिलाएं गीत गाकर ढोलक बजा रही है। असल में शादी तो कृष्ण की रुक्मणी से हुई थी और रूक्मिणी का हरण श्रीकृष्ण ने (मान्यता है कि) औरैया के बिधूना तहसील के कुदरकोट से किया था। तभी से यह क्षेत्र कृष्ण के ससुराल के नाम से प्रसिद्ध है। द्वापर में यह गांव कुन्दनपुर के नाम से राजा भीष्मक की राजधानी हुआ करती थी। देवी रुक्मणी के पिता भीष्मक का किला अब खंडहर में बदल चुका हैं।
शहर में ऐसे कई स्थल हैं जो ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि पौराणिक भी हैं। चर्चा चाहे इंद्र के एरावत की हो, दुर्वासा ऋषि, पांडव हो, तक्षक यज्ञ हर कहीं पौराणिक विरासतें औरैया की धरती की विशेषता रहीं हैं। पर इन सभी में जो विशेष है वह है इस कलियुग का कुदरकोट। जो द्वापर में कुन्दनपुर के नाम से राजा भीष्मक की राजधानी के रूप में जाना जाता था। जो देवी रूक्मिणी के पिता थे। राजा भीष्मक की नगरी कुंदनपुर जो कि अब कुदरकोट है, वह पुरहा नदी के तट पर बसा है। राजा भीष्मक के पांच पुत्र थे और पुत्री के रूप में देवी लक्ष्मी स्वरूप रुक्मणी थी। पुराणों में लिखी गई बातों का प्रमाण मिलना आसान नहीं है। लेकिन राजा भीष्मक की राजधानी की दिशा, स्थान और स्थलों का मिलान करने पर द्वापर का कुन्दनपुर अब कुदरकोट के नाम से प्रसिद्ध है।
महल के बाहर स्थित गौरी मंदिर में पूजा पाठ करना राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी की दिनचर्या में शामिल था। माता गौरी से देवी रुक्मणी ने श्रीकृष्ण के रूप में अपना पति माना था, जिसे गौरी ने पूरा किया। श्रीकृष्ण द्वारा देवी रुक्मणी का मंदिर से पूजा कर लौटते समय हरण करने के साथ ही रुक्मणी की इच्छा पूरी हुई और इसी के साथ देवी गौरी भी मंदिर से आलोप हो गई। तभी से यह मंदिर आलोपा देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। आलोपा देवी मंदिर से महज थोड़ी ही दूर पर राजा भीष्मक का महल जो अब महल न होकर खण्डहर का रूप ले चुका है। इस जगह पर अब एक स्कूल चल रहा है। आस-पास खुदाई करने पर हर जगह विखंडित मूर्तियां ही मिलती हैं। यह पुरातत्व विभाग की उपेक्षा ही है कि यह पौराणिक स्थल आज भी देश दुनिया की नजरों से ओझल ही नजर आती है।
लोग मथुरा, ब्रज, गोकुल, द्वारिका आदि स्थलों को तो जानते हैं लेकिन कृष्ण की ससुराल कुदरकोट को जानने वालों की काफी कमी है। कुदरकोट के महल स्थल से उत्तर की ओर कन्नौज तो पश्चिम की ओर मथुरा स्थित है जबकि कुदर कोट व उसके आसपास शिव के उपासक राजा भीष्मक व उनकी राजकुमारी रुक्मणी द्वारा पूजा किए जाने वाले शिवलिंग स्थापित हैं। कृष्ण की ससुराल कुदरकोट पौराणिक स्थलों में कब गिनी जाएगी और इसके बगल में बह रही पुरहा नदी कब तक कुदरकोट और उसके अतीत को बरकारार रख सकेगी यह यक्ष प्रश्न के रूप में मुंह फैलाए खड़ा है।
पुरानी कथाओं में लिखा है कि रुक्मणी की शादी शिशुपाल से तय कर दी गई थी लेकिन वह शिशुपाल से शादी नहीं करना चाहती थी। वह कृष्ण से प्यार करती थी इस बात की जानकारी जब श्री कृष्ण को लगी तो नदी के रास्ते होते हुए इस मंदिर में गुफा से आए थे और रुक्मणी को अपने साथ ले गए थे। हालांकि अब वह गुफाए बंद हो चुकी है। तब से यह कुदरकोट भगवान श्री कृष्ण की ससुराल कही जाती है। यहां के लोग जन्माष्टमी बड़ी ही धूमधाम से मनाते है इसी मंदिर में रुक्मणि माता की मूर्ति है जहां दूर दूर से लोग आते भी है लेकिन यह धार्मिक स्थान मथुरा नगरी की तरह अनजान है और यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क बनाई जाए जिससे यहां पर इस मंदिर में 81 कोषों के परिक्रमा देने में आसानी हो सके।