मां को मोक्ष दिलाने सात समंदर पार से आया बेटा, इंग्लैंड से आकर प्रयागराज में करेगा अस्थियों का विसर्जन
सनातन धर्म की परंपरा रही है कि मरने के बाद मोक्ष तभी मिलता है, जब अस्थियों का गंगाजी में विसर्जन किया जाए। सनातन धर्म की यह परंपरा विदेश में रहने वाले प्रवासी आज तप नहीं भूले है, इसलिए इंग्लैंड में रहने वाले दीपांकर दीक्षित कानपुर पहुंचे। भैरोघाट के मोक्षधाम में अस्थि कलश बैंक से अपनी मां की अस्थियों का पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हो गए।
कानपुर : सनातन धर्म की परम्परा रही है कि मरने के बाद मोक्ष तभी मिलता है, जब अस्थियो का गंगा जी में विसर्जन किया जाए। सनातन धर्म की यह परम्परा विदेश में रहने वाले देशवासी आज भी नहीं भूले हैं। इसलिए इंग्लैण्ड में रहने वाले दीपांकर दीक्षित कानपुर पहुंचे और भैरोघाट के मोक्षधाम में बने अस्थि कलश बैंक से अपनी माँ की अस्थियों का पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हो गए।
कानपुर के आर्यनगर के रहने वाली 65 वर्षीय कल्पना दीक्षित का निधन कोरोना काल में हो गया था। अपनी माँ के मौत होने की जानकारी जब दीपांकर हो हुई तो उन्होंने भारत आने का बहुत प्रयास किया। लेकिन कोरोना में लगे लॉकडाउन की वजह से वह भारत नहीं आ सके। जिसपर कल्पना का अंतिम संस्कार उनके भतीजे आनंद त्रिपाठी ने किया। मृतका कल्पना के बेटे दीपांकर ने अपने ससुर जगतवीर सिंह द्रोण से आग्रह कर उनकी अस्थियां सुरक्षित रखने के लिए कहा। जिसके बाद अंतिम संस्कार के बाद मृतका कल्पना दीक्षित की अस्थिया भैरोघाट पर बने अस्थि कलश बैंक में सुरक्षित रख दी गयी।
पूरे विधि-विधान से बेटे दीपांकर व बहू जया ने कल्पना की अस्थियों का पूजन करने के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हुए। जंहा पर वो कल्पना की अस्थियों को संगम में विसर्जित करेंगे। मृतका कल्पना की बहू जया ने बताया कि कोरोना के समय लॉकडाउन लगा हुआ था। इसलिए हम लोग भारत नहीं आ सके थे। अब दो साल बाद भारत आ सके है और यंहा से अस्थि कलश ले जाकर उनका विसर्जन संगम में करेंगे।