विभाजन की त्रासदी पर चर्चा सुन नम हुईं लोगों की आंखें, सुबह उठते ही जब लोग अपने ही देश में हो गए विदेशी

यूपी के वाराणसी जिले में एक कार्यक्रम जो संस्कृत मंत्रालय का और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के द्वारा आयोजन किया गया है। इसमें विभाजन की त्रासदी की चर्चा सुनकर सभी की आंखे नम हो गई। इस त्रासदी के दौरान बहुत से लोग ऐसे थे जो सुबह उठते ही अपने देश में विदेशी हो गए थे।

/ Updated: Aug 11 2022, 11:10 AM IST

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वाराणसी: उत्तर प्रदेश के जिले वाराणसी में विभाजन की त्रासदी पर चर्चा सुनकर लोगों की आंखें नम हो गई। प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम संस्कृत मंत्रालय का है या इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के द्वारा किया जा रहा है। इस कार्यक्रम को विभाजन की त्रासदी को लेकर आयोजित किया गया है। उन्होंने बताया कि यह कोई उत्साह नहीं है, इसे हम त्रासदी के रूप में कर रहे हैं। उस समय जो देश का विभाजन हुआ, हिंसा हुई, दुर्घटनाएं हुई करोड़ों की संख्या में लोग इस सीमा से उस सीमा तक गए लोगों को पता नहीं था कि जब 14 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के सीमा का विभाजन की रेखा बताई गई। बहुत से लोग ऐसे थे जो रात में सोए थे और सुबह उठते ही उन्हें यह भी नहीं पता चला कि हम अपने ही देश में विदेशी हो जाएंगे। 

अमृतसर और लाहौर के बीच में कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्हें पता ही नहीं था वह पाकिस्तान का झंडा लगाए हुए थे, उसमें कुछ लोग भारत का भी लगा रखे थे। उन लोगों को यह भी नहीं पता था कि जो वह क्षेत्र है वह पाकिस्तान में है या भारत में। वह त्रासदी बहुत बड़ी थी और उस त्रासदी में करोड़ों लोगों का विस्थापन हुआ। अब तक के इतिहास में इतने बड़े करोड़ों की संख्या में विस्थापन हुआ था। उन्होंने कहा कि काफी लोग सीमा से आए गए लेकिन उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सबसे ज्यादा लोग पाकिस्तान से भारत आए। भारत शुरू से ही अपने आप को सेकुलर इंडिया की बात कर रहा था। उस समय जो कांग्रेस के नेता थे वह बार-बार मुस्लिमों को कह रहे थे हम टू नेशन थ्योरी को नहीं मानते हैं।

देश उतना ही मुसलमानों का है जितना हिंदुओं का है। वहीं पाकिस्तान के कुछ मुस्लिम कह रहे थे कि जो मुस्लिम धर्म को मानते हैं उनके लिए एक अलग राष्ट्र होना चाहिए उन्हें पाकिस्तान चाहिए। लेकिन जो हिंदू उस तरफ थे उनके मन में भय व्याप्त था कि जो पाकिस्तान सिर्फ मुसलमानों के लिए ही बन रहा है तो उसमें उनकी क्या स्थिति होगी। उनके पास कोई विकल्प नहीं था बल्कि जो उनके पूर्वज थे, जो पुरखे थे और जहां वह जन्म लिए उन्हें मजबूर होकर अपने जड़ से कटकर यहां आना पड़ा। आज के संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रुप में प्रशांत एक पुस्तक लिखी है "वो 15 दिन" जिस पर वह अपनी बातों को रखेंगे। उस पुस्तक में 1 अगस्त 1947 से 15 अगस्त 1947 में जो घटनाएं हुई थी वह लिखी गई है। उस पुस्तक के बारे में और लोगों के बीच में अपनी बात रखेंगे।