Video: राजस्थान के नाथद्वारा में गोवर्धन महोत्सव, गायों को सजाया गया... मच गई अन्नकूट की लूट

गोवर्द्धनपूजा एवं कान जगाई के लिये गायों को ले जाने के लिये समुचित बेरिकेडिंग लगाई गई है। सबसे खास अन्नकूट महोत्सव के दौरान वहां आने वाले प्रसादी लूटने वाले आदिवासियों के लिए विशेष इंतजाम किए गए। नाथद्वारा की अन्नकूट पूजा सबसे ज्यादा फेमस है

/ Updated: Nov 04 2022, 10:51 AM IST

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वीडियो डेस्क। राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा में विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर में गोपाष्टमी, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव बड़े ही धूमधाम मनाया गया। श्रीनाथजी मंदिर में अन्नकूट महोत्सव के चलते देश विदेश से श्रद्धालु पहुंचे जिनकी संख्या करीब एक लाख से ज्यादा रही और इन सभी श्रद्धालुओं ने सुबह से लेकर देर रात का मंदिर के अंदर का महोत्सव का आनंद उठाया। सबसे खास बता यह है कि इस मंदिर में मोबाइल और कैमरा ले जाना सख्त मना है।

आपको बता दें कि श्रीनाथजी मंदिर महंत के द्वारा वर्षों पुरानी परम्परा को आज भी निभाया जा रहा है। गोवर्धन पूजा के दिन गौ माताओं को मंदिर में आने का विशेष न्यौता दिया गया जिसे कान जगाई रस्म के नाम से जाना जाता है। मंदिर में गायों के खेलने के लिए कई किलोमीटर तक मिट्टी बिछा गई और उसके बाद इन सभी गायों को मंदिर में प्रवेश दिया गया। गायों को मंदिर में प्रवेश देने के साथ ही गोस्वामी चिरंजीवी विशाल बावा के द्वारा भगवान गोवर्धन की विशेष पूजा की गई  और उसके कुछ समय बाद गायों से गुंदने की हाथ जोड़कर प्रार्थना की गई। श्रीनाथजी मंदिर पहुंची गौशाला से लगभग 200 से ज्यादा गायों को मंदिर विशेष निमंत्रण पर लाया जाता है। इन सभी गायों को गौशाला से साल में एक बार बाहर निकाला जाता है। जब इन्हें बाहर लाया जाता है तो ग्वालों द्वारा इन गायों को पूरी से सजाया व महंदी लगाई जाती है, जो कि देखने में काफी सुंदर लगती है। 
गोवर्द्धनपूजा एवं कान जगाई के लिये गायों को ले जाने के लिये समुचित बेरिकेडिंग लगाई गई है। सबसे खास अन्नकूट महोत्सव के दौरान वहां आने वाले प्रसादी लूटने वाले आदिवासियों के लिए विशेष इंतजाम किए गए। इस महोत्सव की सबसे खास बात यह है कि वर्षों पुरानी परम्परा को आज भी मंदिर मंडल द्वारा निभाया जा रहा है। आज के दिन राजसमंद जिले के आदिवासी मंदिर में पहुंचते हैं और अन्नकूट प्रसाद को लूटते हैं। इन आदिवासियों द्वारा प्रसाद लूटने के लिए अपने अपने घर से कपड़े का थेला पीठकर टांगकर लाते हैं तो वहीं मंदिर में रखे टोकरे व मटके में रखे प्रसाद को लूटते हैं। परम्परा के अनुसार ये आदिवासी प्रसाद लूटने के बाद अपने कस्बे में लूटे गए अन्नकूट प्रसाद का वितरण करते हैं।