वाराणसी सीरियल ब्लास्ट के पीड़ित संतोष का छलका दर्द, कैमरे पर बताई 18 साल पुरानी कहानी

7 मार्च 2006 को संकट मोचन में हुए बम धमाकों में बहुत से लोगों की जिंदगी को बदल कर रख दिया। हालांकि आज वलीउल्ला को हुई फांसी की सजा के बाहर कुछ मरहम तो जरूर लगा है। उन परिवारों को जिन्होंने अपनों को खोया या जिनके अपने आज भी इस ब्लास्ट की पीड़ा को सहन कर रहे हैं। इनमें से वाराणसी के रहने वाले संतोष साहनी संतोष साहनी इस बम धमाके के हैं।

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वाराणसी: 7 मार्च 2006 को संकट मोचन में हुए बम धमाकों में बहुत से लोगों की जिंदगी को बदल कर रख दिया। हालांकि आज वलीउल्ला को हुई फांसी की सजा के बाहर कुछ मरहम तो जरूर लगा है। उन परिवारों को जिन्होंने अपनों को खोया या जिनके अपने आज भी इस ब्लास्ट की पीड़ा को सहन कर रहे हैं। इनमें से वाराणसी के रहने वाले संतोष साहनी संतोष साहनी इस बम धमाके के हैं। जिन्होंने धमाकों के बाद जिंदगी में हुए बदलावों को देखा और जिंदगी बदलने के बाद समाज के उन बदली हुई नजरों को भी देखा। जिसमें उनकी तरफ देखने का नजरिया ही बदल दिया। संतोष इस बम धमाके में जिंदा तो बच गए लेकिन उनका एक पैर खो गया पैर ज्यादा खराब होने की वजह से डॉक्टरों ने उसे शरीर से अलग कर दिया और संतोष की जिंदगी बर्बाद हो गई। संतोष का कहना है कि आज भले ही वली उल्ला को फांसी की सजा मिली हो। उससे उन्हें कुछ राहत तो मिली है लेकिन उनका जख्म अभी भी भरा नहीं है। उनका कहना है कि भले ही आज इस मामले के आरोपी को फांसी के सजा मिल रही हो लेकिन अभी भी उनके सामने उनके परिवार को चलाने का संकट बरकरार है क्योंकि एक पैसे ना ही वह कोई काम कर सकते हैं ना ही अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी सा इंतजाम फिलहाल आज के फैसले के बाद संकट मोचन धमाकों के पीड़ित परिवारों ने न्यायालय को धन्यवाद तो दिया लेकिन संतोष इस बात से बेहद नाराज हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ एक लाख की सरकारी मदद के अलावा किसी ने भी उम्मीद का हाथ नहीं बढ़ाया और आज भले ही वालीउल्लाह को फांसी की सजा मिल गई हो लेकिन उनके जीवन में हर रोज हो रहे धमाकों पर कौन मरहम लगाएगा।

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