दास्तान ए दिल्लीः पार्ट-1, द्वापर से लेकर कलयुग तक से है दिल्ली का सीधा कनेक्शन

बात द्वापर युग की है तब कौरवों और पांडवों के बीच राज्य को लेकर मतभेद चल रहे थे। पांडवों ने ध्रुपद की राजकुमारी द्रोपदी के साथ विवाह किया और धृष्तराष्ट्र की आज्ञा पाकर खांडवाप्रस्थ की तरफ प्रस्थान किया।

/ Updated: Jan 01 2020, 07:52 PM IST

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बात द्वापर युग की है तब कौरवों और पांडवों के बीच राज्य को लेकर मतभेद चल रहे थे। पांडवों ने ध्रुपद की राजकुमारी द्रोपदी के साथ विवाह किया और धृष्तराष्ट्र की आज्ञा पाकर खांडवाप्रस्थ की तरफ प्रस्थान किया। खांडवाप्रस्थ एक ऐसा जगह थी जो बंजर थी और पानी के लिए प्यासी थी। जहां जीवन संभव ही नहीं था। एक घना जंगल और उस जंगल पर नागों का कब्जा। लेकिन धर्म का पालन करने वाले पांडवों ने अपनी मेहनत और शाक्तियों से खांडवाप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बनाया। एक ऐसा नगर जहां संपन्नता, खुशियां और उत्साह था। जो धर्म की नगरी थी। क्यों कि वहां के राजा थे धर्मराज युधिष्ठिर और इसीलिए यहां शांति थी। चारों ओर हरियाली थी। लोग खुश थे सब सही था लेकिन दिल्ली अभी दूर थी।
दरअसल कहा ये जाता है कि ईसा पूर्व 50 में मौर्य राजा थे जिनका नाम धिल्लु था। उन्हें दिलु भी कहा जाता था। दिलु से ही इस शहर का नाम दिल्ली पड़ गया। इतना ही नहीं कुछ इतिहासकार ये भी बताते हैं कि तोमरवंश के एक राजा धव ने इलाके का नाम ढीली रख दिया था। इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि उनके किले के अंदर एक लोहे का खंबा ढीला था। ढीला शब्द बाद में दिल्ली हुआ। क्यों दिल्ली दिलवालों की है। ये कहावत आज के समय में भले ही प्रचलित हो लेकिन इसका जुड़ाव इतिहास से हीं हैं। दरअसल दिल्ली को भारत की देहलीज कहा जाता है और देहली, दिल्ली हुआ, तर्क अभी और भी हैं जिसमे ये कहा जाता है कि तोमरवंश के दौरान जो सिक्के बनाए जाते थे उन्हे देहलीवाल कहते थे। उन सिक्कों से दिल्ली नाम निकला अभी कहानी किल्ली की भी है। जो ढिल्ली हुई और फिर दिल्ली हुई। ये दावा मौर्य राजा दिलु को लेकर है कहा जाता है कि उनके सिंहासन के आगे एक कील ठोकी गई थी। जिस पर ज्योतिषियों ने कहा था कि जब तक ये कील ठुकी रहेगी। तब तक साम्राज्य स्थापित रहेगा। राजा ने उस कील को निकलवाया और दूसरी एक बड़ी कील को ठोक दिया लेकिन ये किल्ली ढिल्ली रह गई, कहते हैं कि यहीं से ढिल्ली शब्द निकला जो आगे चलकर दिल्ली के नाम से जाना जाता है।