मोहर्रम: 500 साल पुरानी परंपरा का गवाह बना जयपुर, सोने चांदी के ताजिओं को देखने पूरा रात जागता रहा शहर
हजरत इमाम हुसैन अले सलाम की याद में मोहर्रम से एक दिन पूर्व शहादत की रात के मौके पर हुसैन को याद करने की परम्परा है। इसी परम्परा को कायम रखते हुए इस बार जयपुर शहर से दो सौ से भी ज्यादा संख्या में ताजिये निकाले जा रहे हैं
वीडियो डेस्क। दो साल के बाद राजस्थान में मोहर्रम मनाया जा रहा है। जयपुर में दो साल के बाद ताजिये निकले हैं तो पूरा शहर उनके स्वागत के लिए आ पहुंचा। पुराने शहर में तिल रखने की जगह नहीं बची थी। खास तौर पर सोने और चांदी के ताजिये को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। मातमी धुनों और ढोल ताशों की गंूज के बीच पुराना शहर पूरी रात सो नहीं सका। पुराने शहर में हालात ये हो गए कि रात में कई घंटों तक ताजियों को शहर में घुमाया गया और इन्हें देखने के लिए इतनी भीड़ हो गई कि पैर रखने तक की जगह नहीं बची। पूरे राजस्थान में जयपुर शहर के ही ताजिये बड़े माने जाते हैं और ज्यादा संख्या में निकालते जाते हैं। दरअसल हजरत इमाम हुसैन अले सलाम की याद में मोहर्रम से एक दिन पूर्व शहादत की रात के मौके पर हुसैन को याद करने की परम्परा है। इसी परम्परा को कायम रखते हुए इस बार जयपुर शहर से दो सौ से भी ज्यादा संख्या में ताजिये निकाले जा रहे हैं। एक दिन पहले इनमें से अधिकतर को पुराने शहर में जूलूस के लिए लाया जाता है। शहर में रामगंज, चांदपोल, शास्त्रीनगर, घाटगेट, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़ सहित पुराने शहर की अन्य जगहों पर जूलूस निकाले जाते हैं। रियासतकाल के मौहल्ले, मौहल्ल मावतान से सोने का ताजिया निकाला जाता हैं। घाटगेट स्थित बडे़ पार्क से चांदी का ताजिया निकाला जाता है। आयोजकों ने बताया कि चांदी और सोने के ताजियों को कर्बला में दफनाया नहीं जाता। इस ताजिये को कर्बला तक ले जाकर वापस लाया जाता है।