ज्ञानवापी को लेकर BHU के पूर्व शोध छात्र ने किया दावा, कहा- मंदिर के मलबे से हुआ मस्ज़िद का निर्माण
पत्रकार राम प्रसाद सिंह ने बताया कि 1991 में जब विध्वंस हुआ बाबरी मस्जिद का तो हम सब विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े हुए थे और हम वन्देमातरम अख़बार के सह सम्पादक थे। इसलिए एक विशेषांक निकालने की व्यवस्था बनी काशी विश्वनाथ विशेश्वर ज्ञानवापी मंदिर। इसी को लेकर हम लोगों ने सहयोग लेकर सारी तस्वीरें और डाक्यूमेंट संकलित किये और 1995 में एक विशेषांक जारी किया।
वाराणसी: पत्रकार राम प्रसाद सिंह ने बताया कि 1991 में जब विध्वंस हुआ बाबरी मस्जिद का तो हम सब विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े हुए थे और हम वन्देमातरम अख़बार के सह सम्पादक थे। इसलिए एक विशेषांक निकालने की व्यवस्था बनी काशी विश्वनाथ विशेश्वर ज्ञानवापी मंदिर। इसी को लेकर हम लोगों ने सहयोग लेकर सारी तस्वीरें और डाक्यूमेंट संकलित किये और 1995 में एक विशेषांक जारी किया। जिसका 1995 में विहिप नेता अशोक सिंघल ने स्वयं नगरी नाटक मंडली में आकर उद्घाटन किया था।
मस्जिद में मिलने वाली कलाकृतियां मंदिर से मिलती हैं
राम प्रसाद सिंह ने आगे बताया कि 'हमारे पास तस्वीर हैं लेकिन जिसकी तस्वीर है वो वर्तमान में उपलब्ध हैं। ढांचा भी उपलब्ध है और तस्वीरों से उसका मिलान किया जा सकता है। तस्वीरें 30 साल पुरानी हैं पर ढांचा भी 400 साल से अधिक पुराना है। वर्तमान में वो चीजें सुरक्षित हैं। उन ढांचों को देखा जाए तो यह साफ़ है कि वहां हिन्दू प्रतिक और कलाकृतियां हैं जो हमारे मंदिरों में बनती थीं। उन्होंने कहा कि जो भाग गिराया गया जो नहीं गिराया गया दोनों में वही सबूत मिलते हैं। तहखाने में जो अवशेष पड़े हुए हैं टूटे-फूटे, मां शृंगार गौरी के अगल-बगल जो पत्थर पड़े हुए हैं सब में वो कलाकृतियां मिलती हैं क्योंकि पत्थरों को मिटाया नहीं जा सकता। थोड़ा बहुत होता तो खुरच के मिटा देते लेकिन ये मिटाना संभव नहीं है।'
नहीं बनता मस्जिद में स्वास्तिक और ओम
जब पत्रकार राम प्रसाद सिंह से पूछा गया कि कौन-कौन सा वो हिस्सा है जिससे प्रतीत होता है कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर का हिस्सा है या मंदिर ही है, तो उन्होंने कहा कि मंदिर और मस्जिद दोनों में बहुत अंतर् होता है। चाहे कलाकृतियों का हो चाहे डिजाइन का हो। हमारे यहां ओम और स्वातिक बनता है वो कभी मस्जिद में नहीं बन सकता। मस्जिद में कभी घंटा नहीं बन सकता और तस्वीरें इस बात को कह रही है कि ये मंदिर ही है।
अंग्रेजों ने दो हिस्सों में बांटा था मस्जिद का तहखाना
उनसे पूछा गया कि आप क्या मस्जिद के तहखाने में भी गए हैं तो उन्होंने बताया कि तहखाने में बहुत बार गया हूँ क्योंकि पंडित सोमनाथ व्यास जी ने 1991 में एक मुकदमा किया दो तीन लोगों को लेकर। उन्होंने कोर्ट में कहा था कि 1669 में जब इस मंदिर को तोड़ा गया तो उनके ही पूर्वज उस मंदिर में पूजा किया करते थे। इस नाते उनके पास यह अधिकारी क्षेत्र बना रहा। राम प्रसाद सिंह ने बताया कि तहखाने को अंग्रेजों ने ही दो भागों में बांट दिया था। उत्तर की तरफ के दरवाजे की चाभी मुस्लिम बंधुओं को और दक्षिण भाग की चाभी व्यास परिवार को सौंप दी। तब से वो उसी प्रकार चलता रहा और तब से ही जो हिस्सा है वो व्यास परिवार के कब्जे में रहा।
ज्ञानवापी को भी मंदिर के मलबे से बनाया गया है
बीएचयू के शोध छात्र रहे पत्रकार राम प्रसाद सिंह ने दावा किया कि 125 फुट चौड़ा और 125 फुट गहरा खुदाई करा दें सब साफ हो जाएगा क्योंकि वहीँ नींव पड़ी हुई है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि जो 1585 में मंदिर बना 1669 में तोड़ दिया गया। सारे अवशेष आज बोल रहे हैं। इसके अलावा और भी हैं और तीनों गुम्बदों को खोदकर गिरा दीजिये उसमे मंदिर का मलबा मिलेगा जैसा राम मंदिर में बाबरी विध्वंस के दौरान बहुत सरे पत्थर ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए मिले हैं। इसमें भी वही मिलेगा क्योंकि इसे भी वैसे भी बनाया गया है।
सबूत मांगते हैं मानते नहीं
उन्होंने कहा कि आप इतिहास पढ़िए। वो इतिहास नहीं जो मुग़ल या हिन्दुस्तानियों ने लिखा है बल्कि अंग्रेजों ने लिखा है।1865 एक अंग्रेज साहित्यकार द्वारा लिखी गयी और लन्दन में छपी, क्योंकि तब भारत में छापेखाने नहीं होते थे जो एशियाटिक सोसाइटी लाइब्रेरी, कोलकाता में रखी हुई है। उसे निकलवाकर देखिये क्या इतिहास है उसमे क्या इतिहास लिखा है श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का। उन्होंने कहा कि दिक्कत यह है कि आप सबूत मांगते हैं पर मानते नहीं है।