हरदोई: शिकायत लेकर पहुंचे पीड़ित को मिली लाठियां, मारते हुए थाने ले गए पुलिसकर्मी, घंटों तक रखा बंद
यूपी के हरदोई में शिकायत लेकर तहसील दिवस पर पहुंचे एक पीड़ित को जमकर लाठियां मिली। उसे घंटों तक थाने में रखा गया। इस मामले को लेकर कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।
हरदोई में प्रशासन बेलगाम हो चुका है। ऐसा इस हफ्ते हुई दो घटनाओं से साबित होता है। चंद रोज पहले डीएम से मिलने की बात कहने पर दो किसानों को सिटी मजिस्ट्रेट ने कोतवाली शहर की पुलिस बुलवा कर कलेक्ट्रेट से उठवा दिया था, जिसके बाद उन्हें घंटो थाने में रखा गया। अब आज कोटेदार की शिकायत लेकर तहसील दिवस पहुंचे आरटीआई एक्टिविस्ट को एसडीएम के आदेश के बाद पुलिस उठा ले गई। इस बीच उसकी पुलिसकर्मियों ने तहसील के अंदर ही जम कर पिटाई भी की है। पीड़ित का कुसूर बस इतना था कि वो अपनी शिकायत लेकर साहब की चौखट तक पहुंचा था।
शहर कोतवाली इलाके के आशा गांव निवासी रामसरन गुप्ता आज शनिवार को सदर तहसील में आयोजित हो रहे संपूर्ण समाधान दिवस में अपनी फरियाद लेकर गए हुए थे।रामसरन गुप्ता का आरोप है कि गांव के ही पूर्व कोटेदार पर गड़बड़ी के आरोप थे जिसका प्रकरण चल रहा है।वर्ष 2009 का प्रकरण और 2015 में इसमें गड़बड़ी की रिपोर्ट लगाई गई थी जिसकी 29 नवंबर तारीख भी लगी हुई है।आरोप है कि इसी प्रकरण को लेकर वह अपनी फरियाद करने गए हुए थे। उन्होंने एसडीएम को शिकायती पत्र दिया एसडीएम ने शिकायती पत्र एआरओ को देकर पूरे मामले में जानकारी चाही।आरोप है कि एआरओ ने गोपनीय बात करनी चाही जिसका उसने विरोध किया इसके बाद एसडीएम ने उसे बाहर करने का आदेश पारित कर दिया। पीड़ित का आरोप है कि उसके साथ होमगार्डों ने मारपीट की।पूरे मामले की सूचना पुलिस को मिली तो मौके पर पहुंचे शहर कोतवाल फरियादी लेकर कोतवाली आ गए। इस पूरे मामले पर प्रशासनिक अधिकारियों ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से साफ मना कर दिया है।
4 दिन पहले भी इस तरह का एक वाक्य हरदोई के कलेक्ट्रेट में देखने को मिला था। जहां जनता मिलन में बिलग्राम कोतवाली इलाके के रहने वाले किसानों ने सिटी मजिस्ट्रेट जो कि उस वक्त जनता मिलने बैठे थे उन को शिकायती पत्र देने के बाद डीएम से अपनी बात कहने की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट सदानंद गुप्ता ने कोतवाली शहर पुलिस बुलाकर उनको थाने भिजवा दिया। अब एक बार फिर से सदर एसडीएम के यहां का यह प्रकरण चर्चा का विषय बन गया है।अब सवाल बड़ा जरूर है कि लोक सेवा आयोग से चयनित होकर जो लोकसेवक जिलों में तैनात किए गए हैं वह शायद लोग की सेवा नहीं बल्कि उनको जूतों की नोक पर रखना चाहते हैं और लोकसेवा की जगह मेवा खाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।