शब-ए-बारात के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने की इबादत, पूर्वजों की रूह बक्शे जाने के लिए की दुआ

शब-ए-बारात को इस्लाम धर्म में बहुत ही पाक दिन माना गया है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों को जन्नत बक्शे जाने को लेकर दुआ मांगते है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार साल में यह एक रात ऐसी होती है, जब अल्लाह अपने बंदों को सेहत और मकबूलियत अता करते हैं।

/ Updated: Mar 19 2022, 03:24 PM IST

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गाजीपुर: शब-ए-बारात को इस्लाम धर्म में बहुत ही पाक दिन माना गया है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों को जन्नत बक्शे जाने को लेकर दुआ मांगते है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार साल में यह एक रात ऐसी होती है, जब अल्लाह अपने बंदों को सेहत और मकबूलियत अता करते हैं।

शब-ए-बारात को गुनाहों के माफी का दिन के तौर पर जाना जाता हैं। यह वह दिन होता है जब अल्लाह लोगों के गुनाह माफ कर जन्नत नसीब करते हैं। ऐसे ही दिन को मुहम्मदाबाद तहसील के मुर्की गांव में भी नफिल नजाम अता कर अपने पूर्वजों की आत्मा को जन्नत नसीब होने की दुआ की जाती है।

शब-ए-बारात  दो शब्दों के योग से बना है। शब और बारात। शब का अर्थ है रात और बारात का मायने होता है बरी होना। मुर्की खुर्द गांव की जामा मस्जिद के सेक्रेटरी मो शहाबुद्दीन ने बताया कि शब-ए-बारात के दिन मरहूम लोगों की कब्रों पर उनके चाहने वालों की ओर से  रोशनी कर अल्लाह से उनके लिए दुआएं मांगी जाती है। इस दिन अल्लाह से मांगी हर दुआ कुबूल होती है।