जिले के थाना गोवर्धन क्षेत्र में 6 वर्ष की मासूम के साथ हुई दरिंदगी को आप भूले नहीं होंगे। इस मामले में पीड़िता को अभी तक न्याय नहीं मिल सका है और न्याय की उम्मीद भी तारीखों में उलझती हुई नजर आ रही हैं। ये तारीखें अदालत की नहीं हैं बल्कि स्कूलों द्वारा बलात्कारी को नाबालिक साबित करने के लिए जन्मतिथि से छेड़छाड़ के दस्तावेजों की हैं।
मथुरा: जिले के थाना गोवर्धन क्षेत्र में 6 वर्ष की मासूम के साथ हुई दरिंदगी को आप भूले नहीं होंगे। इस मामले में पीड़िता को अभी तक न्याय नहीं मिल सका है और न्याय की उम्मीद भी तारीखों में उलझती हुई नजर आ रही हैं। ये तारीखें अदालत की नहीं हैं बल्कि स्कूलों द्वारा बलात्कारी को नाबालिक साबित करने के लिए जन्मतिथि से छेड़छाड़ के दस्तावेजों की हैं। बलात्कारी को नाबालिक साबित करने के लिए न्यायालय में तीन अलग-अलग जन्मतिथियां प्रस्तुत की गई हैं। पीड़िता के पिता की पीड़ा है कि जन्मतिथि में फेरबदल कर बालिग बलात्कारी को नाबालिग साबित कर दिया गया है।
बता दें कि 07-जुलाई- वर्ष 2002; 08-मई- वर्ष 2005 और एक जनवरी वर्ष 2007. ये कोई सामान्य तारीखें नहीं हैं, बल्कि वो तारीखें हैं जिन्होंने सिस्टम का बलात्कार कर रखा है। ये तीनों तारीखें उस बलात्कारी की जन्मतिथियां हैं, जिन्हें न्यायालय में पेश किया गया। 25 मई 2021 को गोवर्धन थाना क्षेत्र के एक गांव में छह वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार हुआ था। आरोपी पकड़ा गया और मामला न्यायालय में है। घटना के समय आरोपी की उम्र 19 साल बताई गई। सरकारी स्कूल की टीसी में उसकी जन्मतिथि सात जुलाई सन 2002 थी। अब शुरू होता है आरोपी को नाबालिग दिखाने का खेल। न्यायालय में सरस्वती विद्या मंदिर जूनियर हाई स्कूल राल मथुरा का एक जन्म तिथि प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें आरोपी की आयु 8 मई 2005 दिखाई जाती है। नई जन्मतिथि के हिसाब से आरोपी घटना के समय 16 साल कुछ महीने का और नाबालिग साबित होता है। इस मामले की सुनवाई किशोर न्यायालय में होती है। लेकिन किशोर न्याय अधिनियम 18 की उपधारा 3 के अंतर्गत किशोर को 16 वर्ष से अधिक का पाया जाने पर उसके मामले को वयस्क की तरह देखा जा सकता था। इससे बचने के लिए श्री गुरु नित्यानन्द पब्लिक स्कूल, बुखरारी द्वारा जारी की गई आरोपी की एक और नई जन्मतिथि- एक जनवरी वर्ष 2007 किशोर न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है। इस नई जन्म तिथि के हिसाब से बलात्कार का आरोपी 16 वर्ष से कम करीब 14 वर्ष का दिखाया जाता है एक ही आरोपी की इतनी सारी जन्मतिथियां देख कर न्यायालय द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है और मेडिकल बोर्ड आरोपी की आयु घटना के समय 17 वर्ष दो महीने नियत करता है। इससे आरोपी को नाबालिक होने का लाभ तो मिल जाता है लेकिन किशोर न्यायालय द्वारा उसके मामले को वयस्क की तरह सुनवाई के लिए जिला एवं सत्र न्यायालय में भेज दिया जाता है।
अब इन जन्मतिथि की तारीख हो के फेर में पीड़िता के पिता उलझ कर रह गए हैं उनका कहना है कि 19 वर्ष के बालक को गलत दस्तावेज दिखाकर कम उम्र का दिखा दिया गया है। पीड़िता के पिता मेडिकल बोर्ड पर भी सवाल खड़े करते हैं उनका कहना है कि जिन्होंने भी इसमें फर्जी डॉक्यूमेंट जारी किए हैं, उन्हें सजा होनी चाहिए। पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय मिलना चाहिए निराश हुआ हताश पीड़िता के पिता का कहना है उनकी 6 वर्ष की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार की घटना ने उसका जीवन तहस-नहस कर दिया है। वह बच्ची की शादी तक नहीं कर सकते हैं। पीड़िता के पिता ने कहा कि अगर उन्हें जल्द ही न्याय नहीं मिला तो वह कोई भी कदम उठा सकते हैं।
हमारी न्याय व्यवस्था में कानून सबूतों का मोहताज है। उसके सामने कुछ बन्दिशें हैं, लेकिन देश का भविष्य तय करने वाले विद्यालयों के सामने आखिर ऐसी कौन सी बन्दिश है कि एक ही आरोपी की तीन-तीन जन्मतिथिया जारी कर दी जाती हैं। अगर सरस्वती के ये मंदिर भी न्याय व्यवस्था को भटकाने का कार्य करेंगे तो ऐसे स्कूलों से निकलने वाली हमारी अगली पीढ़ी कैसी होगी। ये बेहद चिंतनीय विषय है।
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