इस शोध कार्य को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, द्वारा वित्त पोषित किया गया था। इस अध्ययन के नतीजे निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित शोध पत्रिका “एपोप्टोसिस” में दो भागों में प्रकाशित हुए हैं।
वीडियो डेस्क। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने टी सेल लिंफोमा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। यह अध्ययन प्राणि विज्ञान विभाग, विज्ञान संस्थान, में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार, के मार्गदर्शन में उनके शोध छात्र विशाल कुमार गुप्ता द्वारा किया गया है। शोध छात्र प्रदीप कुमार जयस्वरा, राजन कुमार तिवारी और शिव गोविंद रावत भी अध्ययन करने वाली टीम में शामिल थे। इस अध्ययन में पहली बार इस प्रकार के कैंसर को बढ़ाने में लाइसोफॉस्फेटिडिक एसिड (एलपीए) की भूमिका प्रदर्शित की गई है। लाइसोफॉस्फेटिडिक (Lysophosphatidic acid - LPA) सबसे सरल प्राकृतिक बायोएक्टिव फॉस्फोलिपिड्स में से एक है, जो ऊतकों की मरम्मत, घाव भरने और कोशिका के जीवित बने रहने में शामिल है। सामान्य शारीरिक स्थितियों के दौरान, एलपीए घाव भरने, आंतों के ऊतकों की मरम्मत, इम्यून सेल माइग्रेशन और भ्रूण के मस्तिष्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, डिम्बग्रंथि, स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर के मामलों में एलपीए व इसके रिसेप्टर का बढ़ा हुआ स्तर देखा गया है। अभी तक टी सेल लिंफोमा बढ़ाने में एलपीए की भूमिका तथा टी सेल लिंफोमा के चिकित्सीय उपचार में एलपीए रिसेप्टर की संभावित क्षमता का मूल्यांकन नहीं किया गया है।
Mar 14 2024, 02:12 PM IST
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