मध्यकालीन भारत में दिल्ली पर 1206 से 1290 ईं तक गुलाम वंश के शासन था। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था जिसे मुहम्मद गौरी को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने दिल्ली सल्तनत पर 84 वर्षों तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया था।
गुलाम वंश(1206 से 1290)
मध्यकालीन भारत में दिल्ली पर 1206 से 1290 ईं तक गुलाम वंश के शासन था। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था जिसे मुहम्मद गौरी को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने दिल्ली सल्तनत पर 84 वर्षों तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया था। इस वंश के संस्थापक गुलाम थे, ये राजा नहीं थे। इसलिये इसे राजवंश की बजाय सिर्फ वंश ही कहा जाता है। इस वंश के राजा थे कुतुबुद्दीन ऐबक, आरामशाह, इल्तुतमिश, रजिया, मुइजुद्दीन बहरामशाह, लाउद्दीन मसूदशाह, नासिरुद्दीन महमूद, बलबन, कैकुबाद और कैमूर्स / क्यूमर्स। बुगरा खाँ की सलाह पर कैकुबाद ने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को शासन संभालने के लिये दिल्ली बुलाया। कैकुबाद ने जलालुद्दीन को शाइस्ताखाँ की उपाधि दी, लेकिन जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 1290 ई. में कैमूर्स की हत्या कर खिलजी वंश की स्थापना की।
खिलजी वंश(1290 से 1320 )
वीयो गुलाम वंश के बाद युग आया खिलजी वंश का। ये खिलजी वंश दिल्ली सल्तनत में दूसरा शासक परिवार था। खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था। इसको अमीर वर्ग, उलेमा वर्ग, जनता का समर्थन प्राप्त नहीं था। खिलजी वंश को खिलजी क्रांति की संज्ञा दी गई है, खिलजी वंश की स्थापना के साथ ही सल्तनत में वंश या कुल को तवज्जो ना देकर योग्यता को आधार बनाया गया। खिलजियों ने अपनी शक्ति के बल पर एक बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। जलालुद्दनी खिलजी की उसके भतीजे जूंना खां ने 1296 में हत्या कर दी और खुद अलालुद्दी खिलजी बनकर सिंहासन पर बैठा। अलालुद्दीन खिलजी ने 20 साल तक ही शासन किया। उसने रणथंभौर, चित्तौड़ और मांडू पर क़ब्ज़ा किया और देवगिरि के समृद्ध हिन्दू राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। लेकिन उसकी ये पैठ ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई 1316 के आरंभ में ही अलालुद्दीन खिलजी की मौत हो गई। खिलजी वंश का अंत होने के बाद तुगलग वंश की स्थापना हुई।
तुगलग वंश (1320 से 1412)
5 सितंबर 1320 का खुसरो को पराजित करके गाजी तुगलक ने गयासुद्दीन तुगलक के नाम से तुगलक वंश की स्थापना की। गयासुद्दीन तुगलक ने ही दिल्ली के निकट तुगलकाबाद नगर की स्थापना की थी। 1325 ई. में बंगाल विजय के बाद वापिस दिल्ली लौटते समय दिल्ली से कुछ दूर जौना खाँ द्वारा सुल्तान के स्वागत के लिये बनाये गये लकङी के महल से गिर जाने से सुल्तान की मृत्यु हो गयी।
मुहम्मद बिन तुगलक
गयासुद्दीन तुगलक के बाद दिल्ली की सल्तनत पर मुहम्मद बिन तुगलक सिंहासन बैठा। इसका कार्यकाल 1325 से 1351 ई तक था। महुम्मद बिन तुगलक ने सोने का सिक्का-दीनार और चांदी के सिक्के-अदली चलाये थे। इन सिक्कों के अलावा भी बहुत सारे सिक्के चलाये थे। 25 सालों के अपने शासन ने महुम्मद बिन तुगलक ने कई प्रशासनिक काम किए।
फिरोज तुगलक
तुगलक वंश के अंतिम उत्तराधिकारी था फिरोज तुगलक। जिसका कार्यकाल 1351 से 1388 ई तक था। फिरोज तुगलक को अपने कार्यकाल में कई समस्याओं को सामना करना पड़ा। जिसमें से प्रमुख थीं किसानों का विद्रोह, उलेमा, अमीर, सैन्य आदि वर्गों का विद्रोह, राज्य का खाली खजाना, साम्राज्य का विघटन। और यही वे समस्याएं थी जो तुगलक वंश के पतन का कारण रहीं। इन समस्याओं के समाधान में प्रशासन आर्थिक, प्रशासनिक और सैन्य रूप से कमजोर हो गया।
सैयद वंश(1414 से 1451)
वीयो खिज्रखां ने सैयद वंश की स्थापना की और लोदी वंश से हारने तक शासन किया। सैयद वंश दिल्ली सल्तनत का चौथे नंबर का वंश था। इस परिवार के बारे में कहा जाता है कि ये मुहम्मद गौरी वंशज थे। तैमूर के आक्रमण से की वजह से जब दिल्ली हताश तो हो गई तब सैयदों ने यहां अपनी शक्ति का विस्तार किया। खिज्र खां ने 1414 से 1421 ईं तक शासन किया। खिज्रखां ने सुल्तान की बजाय रैयत ए आला की उपाधि ली। यह स्वयं को तैमूर का उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा का सिपहसलार मानता था।
मुबारक शाह
खिज्र खां के बाद 1421 में मुबारक शाह ने शासन किया। जिसका शासन काल 1434 तक रहा। इसने याहिया बिन अहमद सरहिंद को संरक्षण दिया जिसने तारीख ए मुबारकशाही ग्रंथ को फारसी भाषा में लिखा। यह ग्रंथ सैयद वंश का एक मात्र समकालीन ग्रंथ है, जो सैयद वंश की जानकारी प्रदान करता है।
मुहम्मद शाह
मुबारक शाह के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली की सल्तनत पर राज किया। जिसका शासन काल 1434 से 1445 ई तक रहा। इसके शासनकाल में दिल्ली पर मालवा के शासक महमूद खिलजी ने आक्रमण किया, जिसे रोकने के लिये मुहम्मदशाह ने अपने अधिकारी बहलोल लोदी से सहायता मांगी। जिसके उपलक्ष में बहलोल लोदी को खाने-जहां की उपाधि दी।
मुहम्मद शाह के बाद सुल्तान बने आलमशाह ने 1445 से 1451 तक राज किया। लेकिन इसके समय में सल्तनत का साम्राज्य दिल्ली से सिर्फ 20 कोस पालम तक ही था। सन 1451 में आलमशाह ने बहलोल लोदी को सत्ता दी और खुद यूपी के बदायूं चला गया। और फिर युग आया लोदी वंश का 1451 से 1526 तक लोदी वंश की सल्तनत रही। ये भारत का प्रथम अफगान वंश था। जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था। इस वंश ने दिल्ली की सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया।
बहलोल लोदी अफगानों की शाहुखेल शाखा से संबंधित था। इसने बहलोली नामक सिक्का चलाया। वजीर का पद समाप्त कर दिया। 1484 ई. में जौनपुर के शासक हुसैनशाह शर्की को पराजित कर अपने पुत्र बरबकशाह को जौनपुर का शासक बनाया। इसने उत्तरी बिहार के दरभंगा के शासक कीरतसिंह को पराजित किया। बहलोल लोदी धार्मिक रूप से कट्टर नहीं था, उसने अनेक हिन्दूओं को प्रशासन में शामिल किया था।
सिकंदर लोदी ( 1489 से 1517 ई.)-
यह बहलोल लोदी के बाद शासन आया सिंकदर लोदी का। इसने अफगान अमीरों में प्रचलित जातीय समानता एवं साम्राज्य विभाजन की परंपरा को समाप्त कर दिया। सिकंदर लोदी ने बड़े भाई बरबक से जौनपुर जीता और सल्तनत में मिलाया। 1494 ई. तक इसने सम्पूर्ण बिहार को जीत लिया। इसने पूर्वी राजस्थान के राजपूत राज्यों पर भी आक्रमण किया और धौलपुर, नरवर, मंदरेल, चंदेरी, नागौर, उत्तरिरी को जीत लिया। उसने इन राजपूत राज्यों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये 1504 ई. में आगरा शहर को बसाया। 1506 ई. में आगरा को अपनी राजधानी बनाया।
इब्राहीम लोदी ( 1517 से 1526 ई)
यह सिकंदर लोदी का पुत्र था, इसके समय अफगानों की समानता फिर से उभर आई थी। यह अफगानों को नियंत्रित नहीं कर पाया था। इसने ग्वालियर के शासक विक्रमजीत को पराजित कर ग्वालियर को सल्तनत में मिला लिया। तथा विक्रमजीत को प्रशासन में शामिल कर शमसाबाद की जागीर दे दी थी।
1517 से 18 ई. में इब्राहिम लोदी खतौनी (बूंदी) के युद्ध में राणा सांगा से पराजित हुआ। तुजुक ए बाबरी यानि कि बाबर की आत्म कथा के अनुसार दौलत खां लोदी आलमखां और सांगा के दूत बाबर से आगरा पर आक्रमण करने के लिए मिले थे। अप्रैल 1526 ई. में मुगल शासक बाबर से इब्राहिम लोदी पानीपत के प्रथम युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया। युद्ध में मरने वाला भारत का प्रथम मुस्लिम शासक इब्राहीम लोदी था। इस युद्ध में बाबर ने तोपखाना के साथ तुलुगमा पद्दति का प्रयोग किया था। इसी के साथ लोदी वंश तथा दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।
Mar 14 2024, 02:12 PM IST
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