यूपी के जिले बागपत में चकबन्दी से परेशान किसान ने सुसाइड करने का प्रयास किया, जिसके बाद उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। आत्महत्या करने से पहले किसान ने वीडियो बनाते हुए पूरी कहानी बताकर अपनी मौत का जिम्मेदार अधिकारियों को ठहराया है।
बागपत: उत्तर प्रदेश के जिले बागपत के दोघट थाना क्षेत्र के बामनोली गांव में चकबन्दी से पीड़ित किसान महेशपाल ने आखिरकार वह कर ही डाला जिसकी चेतावनी वह पिछले एक सप्ताह से दे रहा था। मंगलवार को किसान महेशपाल ने अपने घर में जहरीला पदार्थ का सेवन कर लिया। जहरीला पदार्थ खाने से पहले महेशपाल ने एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें उसने चकबंदी विभाग के अधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों पर सीधे आरोप भी लगाए हैं। आनन-फानन में पुलिस उसे लेकर बड़ौत सीएचसी पहुंची है। जहां से उसकी गम्भीर हालत के चलते जिला अस्पताल बागपत के लिए उसे रेफर कर दिया गया है। वहीं पर उसका इलाज कराया जा रहा है। जहां उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है।
आपको बता दे कि दोघट थाना क्षेत्र के बामनोली गांव का है, जहां चकबन्दी से परेशान एक किसान महेशपाल ने अपने घर पर ही जहरीला पदार्थ (सल्फास) खाकर अपनी जान देने की कोशिश की है। किसान महेशपाल की पत्नी ने जब देखा तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। आनन-फानन में मामले की सूचना पुलिस प्रशासन को दी गयी और उसे बड़ौत सीएचसी उपचार हेतु ले जाया गया। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि यह तो एक दिन होना ही था। गत सोमवार को पीड़ित किसानों की एक बैठक बड़ौत तहसील परिसर में चकबंदी अधिकारियों व एसडीएम के साथ हुई थी, जो घंटों की वार्ता के बाद बेनतीजा रही थी। किसानों का कहना है कि इस बैठक में अधिकारियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और वहां से उन्हें बेरंग ही लौटा दिया। याद दिला दें कि बामनोली गांव में एक किसान कृष्णपाल पहले भी चकबंदी प्रक्रिया से परेशान होकर आत्महत्या कर चुका है। कहीं न कहीं प्रशासन की घोर लापरवाही इस मामले में सामने आ रही है। यदि समय रहते महेशपाल की धमकी/चेतावनी पर ध्यान दिया जाता तो यह घटना होने से बच सकती थी। हालांकि इस मामले में अभी तक किसी भी अधिकारी का कोई बयान सामने नही आया है ।
पीड़ित किसान महेशपाल ने वीडियो जारी करते हुए आरोप लगाया की उसके पिता स्व: रामपाल को वर्ष 1976 में नसबंदी कराने पर सरकार द्वारा पांच बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिया गया था। जिसपर एक वर्ष तक इस परिवार ने खेती-बाड़ी की इसके बाद गांव के ही लोगों ने उसपर कब्जा कर लिया। इसके बाद 1983 में परिवार की माली हालत देख ग्राम प्रधान रहे निरंजन सिंह ने परिवार के नाम तीन बीघा भूमि का पट्टा उन्हें दे दिया, लेकिन कुछ दिन बाद उसपर भी कब्जा कर लिया गया। महेशपाल ने कहा कि पट्टे की अधिकतर जमीन को नदी में घोषित करा दिया गया है। उसके बेटे की पढ़ाई आर्थिक तंगी के कारण बीच में ही छूट चुकी है। 9 दिन पहले बिजली कनेक्शन तक काट दिया गया है, पत्नी बीमार है और घर में खाने को रोटी तक नहीं है।
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